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जब मेजर ने कहा- काटेंगे या कटेंगे:माइनर 40 डिग्री तापमान में 16 घंटे तक चीनी सेना से लड़ते रहे; पढ़िए- महायुद्ध की इनसाइड स्टोरी

 

ग्राउंड रिपोर्ट

जब मेजर ने कहा- काटेंगे या कटेंगे:माइनर 40 डिग्री तापमान में 16 घंटे तक चीनी सेना से लड़ते रहे; पढ़िए- महायुद्ध की इनसाइड स्टोरी

रेजांग ला (लद्दाख), जयपुर7 मिनट पहलेलेखक: मनीष व्यास

 

दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज मेमो‘रियल’ के एपिसोड 1 में आपने राजस्थान के परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह का लद्दाख में स्थित मेमोरियल हटाने का सच जाना। (अगर आपने वो एपिसोड नहीं पढ़ा है तो इस खबर के अंत में उसका लिंक है।)

 

आज दूसरे एपिसोड में 1962 में भारत-चीन के बीच हुए 'बैटल ऑफ रेजांग ला' की कहानी। युद्ध जो आखिरी सांस और आखिरी गोली तक लड़ा गया।

राजस्थान के सपूत मेजर शैतान सिंह लहूलुहान हालत में टूटती सांसों के साथ दुश्मनों से दो-दो हाथ कर रहे थे। अफसरों ने सुरक्षित जगह जाने को कहा तो बोले- काटेंगे या कटेंगे, पीछे नहीं हटेंगे।

शैतान सिंह और उनकी कंपनी के 113 जांबाजों ने अपनी शहादत दी थी। युद्ध खत्म होने के तीन महीने बाद जब आर्मी की टुकड़ी रेजांग ला पहुंची थी तो वहां का नजारा देख चौंक गई थी।

शहीद बर्फ में दबे हुए थे। सांसें टूट गई थीं, लेकिन हाथों से हथियार नहीं छूटे।

पढ़िए महायुद्ध की गर्व से भर देने वाली कहानी…

 

भास्कर रिपोर्टर मनीष व्यास, जहां खड़े हैं, उसके ठीक पीछे वाले पहाड़ी रेजांग ला की पहाड़ी है, जहां 1962 का महायुद्ध लड़ा गया। वर्तमान में किसी को वहां जाने की अनुमति नहीं है।

हमारी सीमा में घुस गए चीनी सैनिक

साल था 1962, देश को आजादी मिले 15 साल ही हुए थे। भारत अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था।

उस वक्त सरहद पर तैनात हमारे सैनिकों के हाथों में अत्याधुनिक हथियार नहीं थे। हाथों में थी देश के लिए मर-मिटने की शपथ।

उसी वक्त हिंदी-चीनी भाई-भाई की आड़ में छिपकर चीन ने हम पर आक्रमण कर दिया। जब तक हम उसकी इस चाल को समझ पाते और संभल पाते तब तक उसके सैनिक हमारी सीमा में घुस चुके थे।

चुशुल सेक्टर पर थी चीन की नजर

चीन की गिद्ध नजर लद्दाख में स्थित चुशुल सेक्टर पर थी। इसी को ध्यान में रखते हुए इंडियन आर्मी ने जम्मू कश्मीर के बारामूला में तैनात 13 कुमाऊं को चुशुल सेक्टर में भेज दिया।

2 अक्टूबर 1962 को कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल एच एस ढींगरा के नेतृत्व में 13 कुमाऊं ने लेह पहुंच कर 114 इन्फेंट्री ब्रिगेड में रिपोर्ट किया था। 13 अक्टूबर को 13 कुमाऊं बटालियन चुशुल एयरफील्ड की सुरक्षा के लिए रवाना हो गई। 24 अक्टूबर 1962 तक पूरी बटालियन चुशुल सेक्टर में एकत्र हो गई।

 

चुशुल सेक्टर पर चीन की नजर थी, ऐसे में इंडियन आर्मी तुरंत हरकत में आई और वहां अपनी मुस्तैदी बढ़ाई।

मेजर शैतान सिंह को सौंपी रेजांग ला की जिम्मेदारी

चुशुल की घाटियों में समुद्र तट से करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है 'रेजांग ला'। रेजांग ला एक पहरेदार की तरह है, जो चुशुल घाटी को सुरक्षा प्रदान करता है।

इसी रेजांग ला की सुरक्षा की जिम्मेदारी राजस्थान के उस सपूत को सौंपी गई जो महाराणा प्रताप और बप्पा रावल की शौर्य गाथाएं सुनकर बड़ा हुआ था, नाम था- मेजर शैतान सिंह।

चीन किसी भी वक्त रेजांग ला पर आक्रमण करने वाला था और इसकी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी।

हालात की संजीदगी को देखते हुए मेजर शैतान सिंह ने आदेश मिलते ही तुरंत अपनी चार्ली कंपनी को लेकर रेजांग ला पहुंच गए।

माइनस 40 डिग्री में चीन की घुसपैठ

उस समय तक सर्दी स्टार्ट हो गई थी। रेजांग ला में तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे तक चला गया था। ऐसी हाड़ गलाने वाली ठंड में भी मेजर शैतान सिंह और उनके जांबाज सैनिक दिन-रात हर मिनट-हर सेकेंड चौकन्ने थे।

18 नवंबर 1962 सुबह 4 बजे नायब हुकमचंद के नेतृत्व में चार्ली कंपनी की नंबर 8 प्लाटून के एक जवान ने भारी संख्या में चीनी सैनिकों को अपनी तरफ बढ़ते देखा। उन्होंने तुरंत सभी को अलर्ट किया।

मेजर शैतान सिंह ने तुरंत ही सभी प्लाटून कमांडर्स को अपने-अपने इलाकों में पेट्रोलिंग पर भेजने का आदेश दिया, ताकि दुश्मन के दल-बल के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सके। तमाम पेट्रोलिंग टीमों ने भारी संख्या में चीनी फौज के उनकी तरफ बढ़ने की पुष्टि की।

 

रेजांग ला मेमोरियल में लगाए इस फोटो में दिखाया गया है कि 1962 में किस तरह 13 कुमाऊ बटालियन के जांबाजों ने अपना सब कुछ झोंक दिया।

चीन ने सुबह 5 बजे किया हमला

सवेरे पांच बजे चीनी फौज ने प्लाटून संख्या 7 और प्लाटून संख्या 8 पर सामने से हमला कर दिया था। भारतीय सेना भी इसके लिए तैयार थी।

हमारे जांबाजों ने भी अपनी लाइट मशीन गन और मोर्टार का मुंह खोल दिया। ज्यादातर चीनी सैनिक मारे गए और जो बच गए वो जान बचाकर पीछे भाग गए।

सामने से हुए इस आक्रमण में विफलता मिलने के बाद दुश्मन फौज ने दूसरे प्लान पर काम करना स्टार्ट कर दिया और दूसरी तरफ से हमला बोल दिया।

जमादार हरिराम के नेतृत्व में भारतीय सेना ने चीन की इस भारी गोलीबारी का डटकर सामना किया। दुश्मन फौज की तादाद बहुत ज्यादा थी और हमारे पास गोलियां कम थीं। चीन की सेना ने इस इलाके में कब्जा कर लिया।

इसके बाद उत्तरी छोर पर मौजूद चार्ली कंपनी की प्लाटून संख्या 7 पर भी दुश्मन फौज ने हमला कर दिया। जमादार ने मोर्टार सेक्शन को दुश्मन फौज को निशाना बनाने का हुक्म दिया। मोर्टार सेक्शन ने चीनी फौज को भारी नुकसान पहुंचाया।

लांस नायक ने 10 चीनी सैनिकों को पटक-पटक कर मार डाला

इसके बाद चीनी फौज ने मीडियम मशीन गनों के साथ फिर से हमला किया। इस बार लड़ाई सिर्फ बंदूकों और गोलियों से नहीं हाथों से भी लड़ी गई।

कुश्ती बाज लांस नायक सिंह राम यादव ने 10 चीनी सैनिकों को बालों से पकड़ कर चट्टानों पर पटक-पटक कर मार डाला। इस प्लाटून के सभी सैनिक अटल शौर्य के साथ लड़े और हंसते-हंसते देश पर सर्वस्व न्यौछावर कर गए।

 

दुश्मन फौज की तादाद बहुत ज्यादा थी और हमारे पास गोलियां कम थीं। इसके बावजूद भारतीय सैनिक आखिरी सांस तक साहस से लड़े।

'काटेंगे या कटेंगे, पीछे नहीं हटेंगे'

इसके बाद चीनी सैनिकों ने प्लाटून संख्या 9 पर हमला बोला। चीनी सैनिकों ने भीषण गोलीबारी की। कई भारतीय सैनिक शहीद हो गए और मेजर शैतानसिंह बुरी तरह जख्मी हो गए।

मेजर शैतानसिंह लहूलुहान थे, लेकिन इस हालत में भी अपने साथियों में जोश भर रहे थे। उन्होंने अपने सैनिकों को जोर से आवाज लगाई और कहा-काट देना या कट जाना पर सौगंध है, तुम्हें भारत माता की, अब पीछे मत हटना।

मेजर शैतान सिंह बुरी तरह से घायल थे। ऐसे में अधिकारियों ने फौरन उन्हें सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचने के आदेश दिए, लेकिन उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया। वही कहा जो उन्होंने अपने साथियों से कहा था- काटेंगे या कटेंगे, पीछे नहीं हटेंगे।

उन्होंने नायक रामचंद्र यादव और उनके साथ एक और जवान को बटालियन हेडक्वार्टर भेज दिया, ताकि वो दुश्मन के आक्रमण की सारी जानकारी वहां पहुंचा सकें।

आखिरी सांस-आखिरी गोली तक लड़ने का संकल्प

मेजर शैतान सिंह को लड़ाई में कंधे पर बुलेट लग गया था। तब उन्होंने बाकी जवानों को कहा था कि वो ये युद्ध आखिरी सांस तक लड़ने वाले हैं।

इस पर उनके सभी साथी जवानों ने उन्हें कहा कि वो भी यहां देश के लिए आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक लड़ेंगे।

इस दौरान जब मेजर शैतान सिंह को काफी गोलियां लग गईं तो रेडियो ऑपरेटर रामचंद्र उन्हें अपने कंधे पर उठाकर वहां से थोड़ा नीचे लाकर एक पत्थर के नीचे बैठाया। वहीं उनका निधन हो गया।

(युद्ध में जिंदा बचे रेडियो ऑपरेटर रामचंद्र यादव ने ये घटना बटालियन मुख्यालय को बताई थी। तकरीबन 16 घंटे तक चले इस युद्ध में चीन के 1300 से ज्यादा सैनिक मारे गए। चीन के अखबारों में भी भारतीय सैनिकों के शौर्य की महागाथाएं छपीं।)

 

मेजर शैतान सिंह के शव के साथ उनके साथी, ये तस्वीर सोशल मीडिया पर है। इसी जगह मेमोरियल बनाया गया था।

चीन ने छोड़ दिया चुशुल पर कब्जा करने का सपना

मेजर शैतान सिंह और उनके कई साथी शहीद हो गए, लेकिन उन्होंने चीनी सैनिकों की हिम्मत को भी तोड़ दिया। चीन ने चुशुल पर कब्जा करने का सपना हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दिया। मेजर शैतान सिंह को वीरता, अदम्य साहस, दृढ निश्चय और पराक्रम के लिए मरणोपरांत भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

मेजर शैतान सिंह की कंपनी के सामने थी ये चुनौतियां

  • विपरीत मौसम : रेजांग ला जैसी पोजीशन पर कब्जे के लिए मेजर शैतान सिंह की कंपनी को भेजने में देरी हो गई थी। वो और उनके जवान वहां के मौसम और परिस्थितियों में खुद को ढालते उससे पहले ही हमला हो गया था।
  • आर्टिलरी सपोर्ट मिलना मुश्किल : रेजांग ला के ऊपर मुकपरी टॉप का तिकोना कोना ऐसा था कि वहां से होने वाले हमले में रेजांग ला पर बैठे जवानों को आर्टिलरी सपोर्ट मिल पाना लगभग असंभव ही था।
  • इंटरनेशनल बॉर्डर पर पेट्रोलिंग के आदेश नहीं : भारतीय सैन्य दल को अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पेट्रोलिंग के ऑर्डर ही नहीं थे। इसके चलते उनकी पेट्रोलिंग महज 400 यार्ड तक ही सीमित होकर रह गई थी। ऐसे में दुश्मन के काफी करीब पहुंचने पर हमले का अंदेशा मिल पाया था।

 

अधीर धाम, जहां पर 113 जांबाजों का अंतिम संस्कार किया गया था।

अहीर धाम में 113 जवानों का अंतिम संस्कार

इस युद्ध की स्मृति में 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी को पुनर्गठन के बाद अब रेजांग ला कंपनी के नाम से जाना जाता है। यहां बना युद्ध स्मारक रेजांग ला के इतिहास का गवाह है।

अहीर धाम उस पवित्र स्थान पर स्थित है, जहां भारत माता के 113 वीर जवानों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया था। तत्कालीन ब्रिगेड कमांडर तपीश्वर नारायण रैना द्वारा इन सभी जवानों को मुखाग्नि दी गई थी।

युद्ध के गवाह बोले- मेजर शैतान सिंह और उनकी कंपनी न होती तो लेह भारत में नहीं होता

भारत-चीन बॉर्डर पर रेजांग ला पोस्ट के पास बसे जीरो बॉर्डर विलेज चुशुल के रहने वाले 77 साल के बुजुर्ग सोनम रेगजीन उर्फ एसआर बाबा उन चंद लोगों में से हैं, जिन्होंने 62 का युद्ध अपनी आंखों से देखा था।

जब साल 1962 का ये युद्ध लड़ा गया, तब सोनम साढ़े 17 साल के युवा थे और गांव में ही मौजूद थे।

इस गांव में अब इस युद्ध के चश्मदीदों में से जिंदा बचे महज 5 बुजुर्गों में से वो एक हैं। इन दिनों उनमें से अधिकतर बुजुर्ग यहां ज्यादा ठंड के चलते यहां से ज्यादा तापमान वाले इलाकों की तरफ चले गए हैं। हमें यहां सोनम ही मिले।

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